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Harshad Gosai

Harshad Gosai

@harshadgosai2579


मजधार में फंसी कश्तियां ढूंढती है किनारों को,
इबादत करु खुदा से बदल दे हाथ की लकीरों को। फुर्सत के दिन कभी-कभी तो आते हैं, ऐसे कैसे जल्दी जल्दी चले जाते हैं। कोई तो रोक लो, बदल दो ऐसी तस्वीरों को।
"हर्ष" कहेता हैं, आओ मिलकर बदल दे तकदीरों को।

- हर्षद गोसाई "हर्ष"

-Harshad Gosai

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भूख न जाने झूठी भात, नींद न जाने टूटी खाट, और
प्रेम न जाने जात कजात।

-Harshad Gosai