Hindi Quote in Poem by Diksha sharma

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समय बड़ा विकराल है
बदलता कल और आज है
जो हो प्रलोभित तुम रहे,
विध्वंस का आगाज़ है।
प्रहर्श नहीं ये जाल है,
सहर्ष आत्मघात है
जो बच सका वो वीर है,
जो ना बचा हलाल है।
ये कृष्ण का सा रूप है,
कुमारी सा निश्छल भी है
मादक ये मोहिनी सा है
अग्नि सा प्रचंड है।
ये तीर है कमान का,
ये प्रश्न है कमाल का
कि ये मंच है तो,
मंच का संचालक भला कौन है।

Hindi Poem by Diksha sharma : 111582599
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