सुबह को खीलकर शाम को मुरझा जाते हैं ये फुल, या फिर तोड़े जाते हैं किसी और को महकाने के लिए, कभी बन जाते हैं दो दिलों को मिलाने का प्रतीक, तो कभी दिल टुटने पर नोचें जाते हैं किसी आशिक के पैरों तले, कभी बनके किसीकी पहले प्यार की निशानी किताबों में पड़े रहते हैं, और कभी किसीकी रेशमी ज़ुल्फो को सवांर देते हैं,
कभी कबर पे चढा़ये जाते हैं तो कभी मंदिर और मस्जिद में... एक ही छोड़ में खीले सभी फुलों का भी नसीब अलग अलग है, किसीको दर्द मिलता है तो किसीको प्रेम... अब आप ही सोचिए फिर हम तो ईंसान हैं...