बहुरूपिया - लघुकथा ----
"अरे अरे उधर देखो, वह कौन आ रहा है। कितना विचित्र पहनावा पहन रखा है। और तो और चेहरा भी तरह तरह के रंगो से बेतरतीब पोत रखा है।चलो उससे बात करते हैं कि उसने ऐसा क्यों किया।"
"नहीं नहीं, पागल मत बनो। कोई मानसिक रोगी हुआ तो? पता नहीं क्या कर बैठे?"
"तुम तो सच में बहुत डरपोक हो सीमा|"
इतने में पास से गुजरते एक बुजुर्ग ने उन बालिकाओं का वार्तालाप सुना तो बोल पड़े,"डरो नहीं, ये हमारे मुल्क के बादशाह हैं। यह इनका देश की गतिविधियों को जाँचने परखने का तरीका है। यह भेष बदल कर समूचे देश में भ्रमण करते हैं।"
"इससे क्या हांसिल होगा?"
"बहुत कुछ।"
"जैसे?"
"लोगों द्वारा किये गये वार्तालाप से चोरों, बेईमानों और शासन के खिलाफ़ साजिश करने वालों का खुलासा होता है।"
"लेकिन हमने तो सुना है कि बादशाह खुद ही दुराचारी और घमंडी है।"
"हो सकता है कि यह मिथ्या प्रचार उसके विरोधी फैला रहे हों।"
"बादशाह तो आये दिन विरोधियों को कारागार में डलवा रहा है।कितनों को तो मरवा डाला।"
"शासन को सुचारु और व्यवस्थित रखने के लिये कुछ कठोर कदम तो उठाने ही पड़ते हैं।"
"लेकिन सुशासन तो कहीं भी नज़र नहीं आ रहा?"
"ऐसा किस आधार पर कह रहे हो?"
"हर तरफ़ गरीबी, भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी खून खराबा, लूटपाट, हत्या, चोरी डकैती, बलात्कार और ना जाने क्या क्या हो रहा है |"
"ऐसी विसंगतियाँ और बीमारियाँ तो देवीय प्रकोपों से भी संभव हैं|"
"देश की प्रजा त्राहि त्राहि कर रही है | फिर भी बादशाह जनता पर नये नये कर लगा रहा है।"
"यह भी शासन की एक आवश्यकता और मजबूरी है।"
"हमने अपने बुजुर्गों से जो कहावत सुनी है, वह इस माहौल पर सटीक बैठ रही है?"
"कौन सी कहावत?"
"राजा के कर्मों का दंड प्रजा को भुगतना पड़ता है।"
मौलिक लघुकथा -