ग़ज़ल
पीर सदियों से सँजोए होंगे
लोग जो फूट के रोए होंगे
अर्थ हर बार नया खुलता है
शब्द किसने यूँ पिरोए होंगे
फिर वही टीस उठी सीने में
वो मेरी याद में खोए होंगे
देखकर ठूँठ ये आभास हुआ
उम्र-भर बोझ ही ढोए होंगे
उग रही है जो फ़सल आज 'पवन'
बीज इसके ही तो बोए होंगे
लवलेश दत्त 'पवन'
बरेली