ग़ज़ल
ऐसे भी सम्बन्ध निभाना पड़ता है
अनचाहे हँसना मुसकाना पड़ता है
नारी होना इतना भी आसान नहीं
हिस्सों हिस्सों में बँट जाना पड़ता है
जीवन एक अजब सा मेला है जिसमें
जाने क्या क्या खोना पाना पड़ता है
यह दुनिया वो नुक्क्ड़ है जिसपर सबको
रोज़ नया इक खेल दिखाना पड़ता है
पाँवों में तब वो रफ्तार नहीं होती
जब खाली हाथों घर जाना पड़ता है
लवलेश दत्त
बरेली