किस मुगालते में हो ?
कहते हो जिसे इश्क
क्या आइने में देखते हो?
खुद को छिपाने की कोशिश में
इश्क को बना दिया वरिष्ठ
बहते सलिल पर जैसे
बाँध बनाने की नाकाम कोशिश..
चिर यौवन सा वो हरदम
तेरी उम्र को भी छिपा देता
हिरनी सी चंचलता se
तू न जाने क्यूं डर गया...
हजार पर्दे हज़ार पहरे
कम पड़ जाएंगे उसको
इत्र सा बिखर जाएगा
तुम क्या रोकोगे इश्क को....
मुश्क नहीं समझ लीजिए
तबीब नहीं आप, जान लीजिए
कहीँ ऐसा न हो इश्क भरमा जाए
भरी दुनिया में आप रकीब कहलाए...!!
©️ ®️ Vaisshali