बाप - लघुकथा - (पितृ दिवस के उपलक्ष में) ------
सुलेखा दौड़ती हांफ़ती घर में घुसी।
"क्या हुआ बिटिया? क्यों ऐसे हांफ़ रही हो?"
"कुछ नहीं पापा। एक कुत्ता पीछे लग गया था।"
"तो इसमें इतने परेशान होने की क्या बात है? तुम तो मेरी बहादुर बेटी हो।"
"पापा आप नहीं समझोगे।ये दो पैर वाले कुत्ते बहुत गंदी फ़ितरत वाले होते हैं।"
"दो पैर वाले कुत्ते? तुम ये क्या ऊल जलूल बोल रही हो।"
तभी सुलेखा का भाई सूरज हाथ में हॉकी लेकर बाहर की ओर लपका,"अरे बेटा सूरज इतनी रात को यह हॉकी लेकर.......?"
"पापा मैं उस कुत्ते को सबक़ सिखा कर अभी आता हूँ।"
सूरज और सुलेखा के पिता असमंजस और बेचैनी में चहल कदमी करने लगे| वे कुछ सोच और समझ पाते तब तक सूरज वापस भी आगया।
हॉकी के ऊपरी सिरे पर खून लगा हुआ था।
"ये क्या कर डाला तुमने सूरज? कल तुम्हें सरकारी नौकरी ज्वॉइन करनी है और आज? अभी थोड़ी देर में पुलिस आयेगी।"
"पापा मैं रोज रोज मेरी बहिन की तक़लीफ बर्दास्त नहीं कर सकता।"
"मगर बेटा यह तरीका माकूल नहीं है।तुमने तो अपनी ही जिंदगी दॉव पर लगा दी।"
"पापा मुझे जो उचित लगा, कर दिया।"
"ठीक है, अब जो मुझे करना है, करने दो।"
"अरे पापा , आप इस उम्र में क्या करोगे?"
"बेटा अभी इतना भी बूढ़ा नहीं हूँ। लाओ अपनी ये कमीज मुझे दे दो और तुम अंदर घर पर ही रहना।"
बूढ़ा बाप बेटे की कमीज पहन कर और खून से सनी हॉकी लेकर थाने चला गया।
मौलिक लघुकथा