फांस - लघुकथा -
"अरे शुक्ला साहब आप यहाँ? मुझे तो यकीन ही नहीं हो रहा अपनी आँखों पर।"
"विनोद बाबू, जीवन में कभी कभार अनहोनी भी हो जाती है।"
"लेकिन सर, आपका तो महल जैसा बँगला है।केवल चार प्राणी।आप पति पत्नी और बेटा बहू।"
"विनोद बाबू, रिश्तों में खटास आ जाय तो महल भी छोटे पड़ जाते हैं।"
"क्या बात कर रहे हैं सर? आपका तो पूरा परिवार उच्च शिक्षित है।आप भी बड़े सरकारी अधिकारी थे तो मैडम भी शिक्षिका।बेटा भी डायरेक्टर है। उसे तो कंपनी मकान भी दे रही थी।लेकिन उसने इसीलिये मकान नहीं लिया कि वह बूढ़े माँ बाप को अकेले नहीं छोड़ना चाहता था।"
"विनोद बाबू नसीब बदलते देर नहीं लगती।"
"सर कब से हैं यहाँ? आज पहली बार देखा| मुझे तो करीब तीन साल हो गये।"
"अभी पिछले रविवार को ही आया था।"
"सर प्लीज बताइये ना, ऐसा क्या हुआ अचानक कि आपको वृद्धाश्रम में शरण लेनी पड़ी?"
"विनोद बाबू घर की बात घर से बाहर जाते ही बात का बत्तंगड़ बन जाता है।"
"सर मैं तो आपके घर का ही बंदा हूँ।आफ़िस में भी आपके साथ काम किया है।आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं।"
"भाई विनोद बुरा मत मानना, भरोसा शब्द से मेरा तो भरोसा ही उठ गया।"
"सर आपके दिल पर कोई गहरी चोट लगी है।बतायेंगे नहीं तो अंदर ही अंदर घुटते रहेंगे।सर बताने से मन हल्का हो जायेगा।"
"तुम ज़िद करते हो तो बताता हूँ लेकिन यह वादा करो कि यह बात तुम्हारे होठों से बाहर नहीं आनी चाहिये।"
"सर वादा पक्का वादा।"
"पिछले रविवार का किस्सा है। मैं सुबह किचन में अपने लिये चाय बना रहा था।नौकर चाकर तो सब आठ नौ बजे आते हैं। बहू भी किसी काम से किचन में अंदर आयी और एक स्टूल पर चढ़ कर टाँड़ से कुछ उतारने लगी।मुझसे बोली,"बाबूजी थोड़ा स्टूल पकड़ लीजिये, हिल रहा है।मैंने स्टूल पकड़ लिया।अगले ही पल बहू चीखते हुए मेरे ऊपर गिर पड़ी।मैं भी गिर पड़ा।बहू की चीख सुन कर मेरी पत्नी और बेटा भी दौड़ कर आ गये।उन लोगों के आते ही बहू मेरे ऊपर से उठ कर भाग गयी।मेरी पत्नी और बेटा मुझे संदेह पूर्ण नज़रों से घूर रहे थे।दोनों ने मेरी दलीलों को कोई तवज्जो ना देकर सुना अनसुना कर दिया| घर में पूरे दिन अनबोला पसरा रहा।ऊपर से बहू का रहस्य मय तरीके से चुप्पी साध लेना। मजबूरन शाम होते होते मैंने वृद्धाश्रम आने का निर्णय ले लिया।"
मौलिक लघुकथा