एक थी कोमल कली जोअचानक,
निर्दयी के हाथ मे थी आ फँसी
मन मे सहमी और डरी फिर,
भाग्य से कुछ प्रश्न भी करती रही।
क्यो न मुझको राजपथ पर था लगाया?
या शहीदो के शवो पर ही सजाया!
निर्दयी के हाथ मे ही क्यो थमाया?
उसने मसला हाथ से आनन्द पाया।-----------
#निर्दयी