#शांत
लगभग ढाई महिने लगातार घर में रहने के बाद मैंने
महसूसा कि घर में शांत रहना कितना मुश्किल है ।
एक तरफ घर का मेनटेनेंस दूसरा बच्चे सम्हालना और
घर के सारे काम समय पर होना । धन्य है श्रीमती जी जो मेनेज कर लेती हैं ।इससे बेहतर तो हमारा सरकारी दफ्तर है घड़ी दो घड़ी काम करो आराम से लंच करो फिर थोड़ा सो जाओ(बैठे बैठे सोने का अभ्यास मैनै दफ्तर में ही किया है )।
घर पर श्रीमती जी ने सुबह उठा दिया बोली - सुनो मार्केट
जाओ उरदा की दाल ले आओ पापड़ बनाने है ।
"इतनी सुबह "
'हां लाक डाउन में सरकारी आदेश है दुकान दस बजे बंद हो जायेगी '
-"यार करोना बीमारी फैली है भूकंप आ रहा है तूफान आ रहे हैं कल का पता नहीं तुम्हें साल भर के लिए पापड़
बनाने की सोच रही हूं " मैंने टालने की कोशिश की।
'बहाने मत बनाओ तुमको ही रोज पापड़ लगते हैं उठो'
उसने मुझे सुबह से थैला पकड़ा दिया ।
मुझे समाचार देखना था बच्चे टी वी पर कार्टून देख रहे
थे । परेशान होकर मैंने भगुआ कुर्ता पहना और बाहर जाने निकलने लगा ।
" कहां चले केसरिया बालमा " चिढ़ाते हुए श्रीमती जी ने पूछा ।
'मैं शांति की खोज मैं जा रहा हूं ' मैंने गंभीर स्वरों में कहा।
"लाक डाउन के बाद शांति (कामवाली) काम पर आ
जायेगी कहीं खोजने की जरूरत नहीं "
-' मैं उस शांति की बात नहीं कर रहा '
"अच्छा तो तुम आफिस वाली शांति की बात कर रहे हो
आफिस की तो छुट्टी है उसके घर न जाना उसके ससुर को करोना हो गया है वो तो मिलेगी नहीं करोना वायरस लेकर
आ जाओगे " पत्नी ने समझाया।
'अरे मैं भगवत भजन वाली शांति की खोज में जा रहा हूं '
-"अच्छा आसाराम वाली शांति "?
'नहीं नहीं मैं दाता राम वाली शांति पाने निकल रहा हूं'
मैंने झल्ला कर कहा ।
"ठीक है जाओ जाओ चौराहे पर खाकी वर्दी वाले शांति दूत बैठे हैं ऐसी जगह शांत करेंगे कि न भजन करने लायक बैठ सकोगे न भोजन करने लायक सुना है वो
खास जगह देखकर ही सुताई करते हैं ।
यह सुन कर मैं वापस आ कर बैठ गया ' सबसे भला अपना घर '।