बरसों बाद मिले आज हम उनसे।
आंखें नम थी, और जुबान ख़ामोश,
चहेरा आज भी उनका, हुर सा था।
मजबूरी मे डुबे वो भी थै और हम भी,
शुरुआत करे तो आखिर कौन करे,
हिम्मत जुटाई, और पुछ लिया," कैसे हो?"
फिर क्या था,
चांद से चहैरे पर काले बादल छा गए,
आंखों से नम सी हलकी बारिश हो गई,
जुबान बिजली की तरह लड़खड़ा गई।
गीली आवाज थी, फिर भी
संभालकर अपने आपको वो भी बोल दिए,
"जैसा छोड़कर गए थे, बस वैसे ही"।
- गौरव महेता "मिरव"
#Quiet