तुम्हारे स्पर्श की चाह नहीं,
तुम्हें पाने की चाह नहीं,
तुम्हें अपना बनाकर, फिर खोने की चाह नहीं,
तुम्हें अपने बांहों के बंधन में, कैद रखने की चाह नहीं,
चाह नहीं कि मैं तुम्हारे ख्यालों में भी भटकूं,
होकर मौन, तुम्हारे शब्दों की चाह नहीं,
चाह यही कि, तुम्हारे दर्श को,
इक लम्हा इक पल मिल जाए,
होगा यूं जैसे किसी देह - अस्थि को,
पावन गंगाजल मिल जाए…