लड़की हूँ मैं
सब कहते हैं लड़की हूँ मैं
घर से निकलते ही मुसीबत में घिर जायेगी
कभी भी किसी आफत में फंस जायेगी
छूना चाहती हूँ मैं आसमान को..
पर सब कहते हैं लड़की हूँ मैं
कहीं भी किसी गंदी दावत में घिर जायेगी
घर लौटेगी जब आत्मा पर घाव लेकर
लोगों की लानत में घिर जायेगी
नहीं जी पायेगी उन तानों के बीच
पर सुनों समाज के ठेकेदारों
लड़की हूँ मैं
इसलिए तो आगे बढ़ना चाहती हूँ
आसमां को छूना चाहती हूँ मैं
आपकी छोटी सोच का खामियाजा मैं क्यों भुगतूं
आप अपनी सोच को संभालो
मैं तो चली
अपने संस्कारों को सहेजकर
अपनी मंजिल को छूने
रोक सको तो रोक लो..
#बढ़ना