सुबह एक कप चाय,
दोपहर धूप की रोटि,
शाम अंधकार की थकान,
जिन्दगी हम तेरे मज़दूर.
जिम्मेदारी का बोझ,
रोजीरोटी की चडान,
खुशियों की बोली,
जिन्दगी हम तेरे मज़दूर.
ना कोई रिश्ते,
ना कोई शिकवे,
कुचा- कुचा ही हमारा निवाला,
जिन्दगी हम तेरे मज़दूर.
ठोकर की हे आदत,
दर्द की ना हे फिक्र,
मौत से क्या डरना,
जिन्दगी हम तेरे मज़दूर.
दफना हुआ इन्शान,
मशीन की हे लत,
ना कोई जज्बात -क्यूंकि,
जिन्दगी हम तेरे मज़दूर.
Bhavika