ख़ुशी
मैं ख़ुशी हूँ
मैं बसती आप में ही हूँ
पर आप हैं कि
मुझे इसमें,उसमें तलाशते हैं
कभी यहाँ तो कभी वहाँ
कभी ऊँचे मकान में तो
कभी लम्बी गाड़ी में खोजते हैं
पर क्यूँ जनाब?
ग़लत फ़हमी के शिकार हैं आप
मैं आपके घर के कोनो में बसी हूँ सरकार
अंधेरी झोपड़ी की उस गुदड़ी में
मिल जाती हूँ मैं, उसकी थकी देह की सुकून
भरी गहरी नींद में जो नहीं मिलती
करवट बदलते उन मोटे गद्दे तकियों में
आधी-अधूरी भूख से भरे हुए उदर में
भरी हुई पात की छूटी हुई जूठन से
मिले हुए सुख से टकराए हुए अहं की
थकी हुई देह की छुवन भरे नेह की
ख़ुशी हूँ मैं ख़ुशी जो बसी हूँ तुम्हीं में, बस तलाश लो मुझे अपने में।
ज्योत्सना सिंह
लखनऊ
10:43pm.
1-1-2020