बेखबर हो के भी दिल दे बैठी
बैठे बिठाए एक अनजान दर्द ले बैठी
न जाने कौन सा विश्वास मन में बैठ गया
दिल के कोने में एक डर जैसे बैठ गया
गुजरते पल के साथ रंगीन नज़ारे दिखते
जिंदगी हो गई गुलज़ार ये सपने दिखते
एक दिन सोचा यूं सपने की हकीकत जानूं
बिन इशारा किए उन्हें क्यूं दिलबर मानूं
बेकाबू दिल की तरंगें संभाले नहीं संभलीं
उड़ते पगसे जैसे पी से मिलने को निकली
मिलके उनसे ज्यों मेरा पूछना हुआ ऐ दिल
बिखरे सारे सपने सामने था मेरा कातिल
एकतरफा प्यार का होता है क्या यही अंजाम
पूछना भूल थी या बरबादी का दूजा है नाम
#पूछना