देखा हम सबने जीवन में ,जादूगरों का मायाजाल
किसी को कुछ बना देते, बुनते कैसे कैसे इंद्रजाल
बचपन की नज़रें थीं देखती, अचरज भरी ये चाल
हो जाता सब साकार, मदारी दे जब डमरू पे ताल
चकित होते थे देखकर खेल, मदारी होता मालामाल
अब न तो कोई मायाजाल, और न ही कोई इंद्रजाल
मदारी बनके कोरोना आया, रचा न कोई मायाजाल
दिखाया वही रचे थे हम, सैकड़ों वर्षों का जो हाल
नहीं ये कोई अजूबा था, हकीकत खड़ी हमारे भाल
हकीकत अब न समझे तो, आगे क्या होगा हाल
चलें हम सदा प्रकृति के साथ, बनाकर उसको अपना ढाल
रहे न शेष जिंदगी भर ,पछतावा न ही कोई मलाल
#आश्चर्य