मिलने की चाहत दिल में है पर डर क्यों ऐसा लगता है
न खत्म कहानी हो जाए इस दिल की जो मुझमें धड़कता है
मिलते ही प्रेम तरु मुरझाएंगे बरबस मन सोच तड़पता है
क्या प्रीति का दूजा नाम विरह है अपने को मै कैसे समझाऊं
या मुलाकात ही अंतिम सच है या पिया की जोगन बन जाऊं
#मुलाक़ात