मेरी बगल में एक दादाजी बैठे हैं। ठेकुआ खा रहे हैं कुटुर- कुटुर। दांत एकदम चकाचक। शरीर भी दुरुस्त। वापी से लौट रहे हैं। नालन्दा जाएंगे, खेती देखने। बता रहे हैं कि अपना खाना वे खुद बनाते हैं। मैंने उम्र पूछी तो बोले- 90 बरस। बहुत अच्छा लगता है स्वस्थ-प्रसन्न, चलते-फिरते बुज़ुर्गों को देख के। वे बोलते जा रहे हैं- " पहले वापी नहीं जाता था। पत्नी ज़िंदा थी न तो हम दोनों रहे आते थे गांव में ही। तब भी मैं ही खाना बनाता था। फिर इसी सितम्बर में पत्नी मुझे धोखा दे गई। छोड़ के चली गयी।" आवाज़ भर्रा गयी है उनकी। शीशे से बाहर देखने लगे हैं। साथी की ज़रूरत, इसी उम्र में तो सबसे अधिक होती है।
#फिरचलदीसवारी