#आनंद
#रास्ता # (लघुकथा)
घनानन्द के हाते में कुत्ते-बिल्ली का हमेशा आना-जाना लगा रहता था | उनका बड़ा सा परिवार था, सो चापानल के पास पड़े जूठन में से कुछ न कुछ खाने के लिए उन दिनों को हमेशा मिल ही जाया करता | पर, कुत्ते-बिल्ली की आपस में कभी बनती नहीं थी ! मौक़ा पाते ही.. वो एक-दुसरे के ऊपर छींटाकशी करना शुरू कर देते |
एक बार बिल्ली, हाते में रखे बालू के टीले पर उछल कर बैठ गई और कुत्ते को चिढ़ाने लगी, ”देख , मैं तुमसे बड़ी हो गई, हा..हा..हा....|”
“मौसी, जान ले, कद से कोई बड़ा नहीं होता ..अक्ल से बड़ा होता है।”
“अच्छा...! अपने को बड़ा अक्लमंद समझता है।तो फिर गली, चौक-चौराहे पर हर समय भौंकते क्यूँ रहता है ?” बिल्ली ने पलटवार किया ।
“ अरी... ओ, भोली मौसी ! क्या करुँ? बिना भौंके, आजकल रास्ता छोड़ने को कोई तैयार ही नहीं होता !”
---मिन्नी मिश्रा
स्वरचित/ पटना