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चरखा चलाने वाले के देश में
राजनेता इतने बौरा गए,निज स्वार्थ और, कुर्सी की खातिर
देश को ही चारा समझ
चर कर खा गए
निज स्वार्थ और.........
मधुमास ऋतु,उमंग,उल्लास बहे रसधार की,
इतनी नफरत पल रही दिलों में,
कैसे कहें हम
कि बसंत तुम आ गए!!
निज स्वार्थ और.........
आज बसंतपंचमी,शहीद दिवस गांधी को याद करूं या
पूजन करूं मां शारदे का
विचारों की लड़ाई में
हम अपनी संस्कृति ही भुला गए
निज स्वार्थ और .........
खिले फूल सरसों के कोयल कूक रही आमों पर
सियासत की आंधी कुछ
इस तरह चली कि
बौर आने से पहले ही फूल मुरझा गए
निज स्वार्थ और .........