ग़ज़ल: غزل
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दोस्तो, आदमी और ज़िंदगी की बेबसी को उकेरती पेश है मेरी आज की लिखी ग़ज़ल, अर्ज़ किया है-
2122-2122-2122-212
कर चुके सब काम, बाक़ी ज़िंदगी में क्या करें
रोज़ो शब अब हम नफ़स की नौकरी में क्या करें //१
کر چُکے سب کام، باقی زِندگی میں کیا کریں
روزہ شب اب ہم نفس کی نوکری میں کیا کریں //۱
गुम हुए हम आगही ए बेख़ुदी में, क्या करें
कुछ नहीं दिखता है ऐसी तीरगी में, क्या करें //२
گم ہوئے ہم آگہی اے بیخودی میں، کیا کریں
کچھ نہیں دکھتا ہی ایسی تیرگی میں، کیا کریں //۲
वक़्त ख़्वारी के सिवा पीरी में अब क्या काम है
रह के भी अब सोने की इस झोंपड़ी में क्या करें //३
وقت خواری کے سِوا پیری میں اب کیا کام ہے
رہ کے بھی اب سونے کی اس جھونپڑی میں کیا کریں //۳
अब निकल भी तो नहीं सकती हैं दामे ख़ल्क़ से
मक्खियाँ जो गिर गई हैं चाशनी में, क्या करें //४
اب نکل بھی تو نہیں سکتی ہیں دامے خلق سے
مکّھیاں جو گر گئی ہیں چاشنی میں کیا کریں //۴
ऐ ख़ुदा कुछ उनका भी सामान कर दे कस्ब का
मुब्तला जो हैं सुख़न ओ शाइरी में क्या करें //५
اے خُدا کُچھ اُنکا بھی سامان کر دے کسب کا
مبتلا جو ہیں سخن و شاعری میں کیا کریں //۵
गर न डालें मनचलों पे डोरे अपने हुस्न का
तो बुताँ रहके जुदा ख़ुश पैकरी में क्या करें //६
گر نہ ڈالیں منچلوں پے ڈورے اپنے حُسن کا
تو بُتاں رحکر جُدا خوش پیکری میں کیا کریں //۶
वो तो अब मर जाने की धमकी से भी डरता नहीं
मर न जाएँ हम तो ऐसी दोस्ती में क्या करें //७
وہ تو اب مر جانے کی دھمکی سے بھی ڈرتا نہیں
مر نہ جائیں ہم تو ایسی دوستی میں کیا کریں //۷
मसअला सबका वही है, ग़ुरबा हों, ज़रदार हों
वो महल में क्या करें, हम झोंपड़ी में क्या करें //८
مسئلہ سبکا وہی ہے، غربا ہوں، زرداری ہوں
وہ محل میں کیا کریں، ہم جھوپڑی میں کیا کریں //۸
उम्र काटी बूदगी के ही अँधेरों में तमाम
आ के भी हम दो घड़ी को रौशनी में क्या करें //९
عمر کاٹی بودگی کے ہے اندھیروں میں تمام
آ کے بھی ہم دو گھڑی کو روشنی میں کیا کریں //۹
बढ़ गई खूँ में शकर तो 'राज़' मय भी है हराम
अश्क आशामी के जुज़ हम तश्नगी में क्या करें //१०
بدھ گئی خوں میں شکر تو راز مے بھی ہے حرام
اشک آشامی کے جز ہم تشنگی میں کیا کریں //۱۰
~राज़ नवादवी
(एक अंजान शाइर का कलाम)
#راز نوآدوی
(ایک انجان شاعر کا کلام)
बाक़ी- शेष
रोज़ो शब- दिन रात
नफ़स- साँस
आगही ए बेख़ुदी- चेतना से आगे निर्विकारता का ज्ञान
तीरगी- अँधेरा
वक़्त ख़्वारी- समय को खाना
पीरी- बुढ़ापे
दामे ख़ल्क़- सृष्टि की क़ैद
क़स्ब- धनोपार्जन
मुब्तला- किसी काम में लगा होना
बुताँ- सुंदरियाँ
सुख़न- काव्य
ख़ुश पैकरी- शारीरिक सौंदर्य
मसअला- समस्या, विषय
ग़ुरबा- ग़रीब लोग
ज़रदार- धनवान
बूदगी-अस्तित्व
खूँ- ख़ून