अफसाना सा हो गया है अब तो इश्क़ मेरा अल्फाजों को संभालना अब मुमकिन नहीं
बिखर गए हैं जो तेरे निशाँ अर्श पे
उनको समेट पाना अब मुमकिन नहीं
बेबाक बाद ए शबा है इश्क की
इसको रोक पाना अब मुमकिन नहीं
तेरी मोहब्बत अब बंदगी बन गई है मेरी
खुदा से रुठ जाना अब मुमकिन नहीं।।