चलना मुमकिन नही अंधेरे में इस ड़गर पे...
रोशनी भी होगी सुरज को जरा उभरने दो...
ऊड़ूंगा फिर वही ऊचीं उड़ान आसमां मे...
अभी गफलत मे हूँ मुझको थोड़ा सम्भलने दो..
पलट के आऊंगा शाखों पे खुशबुएँ लेकर...
खिजा की जद में हूँ मौसम ज़रा बदलने दो...
वही रूतबा वही जलाल होगा फिर से...
अभी बुरा वक्त है इसको जरा गुजरने दो....