कुछ दुखों को भूलने का प्रयास कर रहा था,तो कुछ को समेटने में लगा था, परंतु दुःख तो हमारी उम्र की तरह हो चुके थे,जिसके स्वभाव में सिर्फ बढ़ना ही है और मुझे जर्जर और अशक्त रूप देना है..
फिर अचानक एक दिन मैंने पाया कि ,ये दुःख मुझे आत्मज्ञान के अति कठिन मार्ग पर धीरे धीरे ढकेल हैं