मैं पुनः प्रस्फुटित होऊंगा, तुम धरा बन अपना स्नेह देना मुझे, किसी नदी का जल बन सींचना मुझे, बन उष:काल के सूर्य की प्रथम किरण स्निग्ध करती रहना मुझे, मेरे हृदय के प्राणवायु बन जाना और स्पंदित करती रहना मुझे..मेरी धमनियों में बहने वाला रक्त, मेरे अन्तर की ऊर्जा बन जाना तुम।