ग़ज़ल
यहां वहां कहीं कई, मिसाल ही नहीं,
डराडरा, मरा मरा ईसार भी नहीं,
ऐ मालिको, बनाएं कैसे आशियां तुने,
यहां कई के पास छतों दिवार भी नही,
भरा हुआ , ज़रा जरा नहीं, धुरा नहीं,
पड़ा पड़ा सड़ा नहीं, मरीख़ भी नहीं,
लिखीं विखी, सुनी सुनाइ कोई नहीं,
रवां दवा, शराब भी, ख़राब भी नहीं,
खड़ा खड़ा, रहा यहां तभी अभी, वहीं,
न पासपास, दूर ना, करीब भी नहीं,
मिला जुला, हिला मिला, नहीं वही कभी,
हुआ ज़रा मश्गूल वो, शरीख़ भी नहीं।
- विपुल भट्ट, भुज