आरोग्य के देवता भगवान धन्वंतरि
यशवन्त कोठारी
दीपावली से दो दिन पूर्व के दिन को हम सभी धन तेरस के रूप में मनाते हैं । इसी दिन आरोग्य, स्वास्थ्य के देवता भगवान धन्वंतरि का भी जन्म हुआ था । भगवान धन्वंतरि आयुर्वेद शास्त्र के प्रणेता भी थे । आयुर्वेद जीवन विज्ञान है धन्वंतरि त्रयोदशी को स्वास्थ्य दिवस के रूप में भी मनाया जाता है । वैसे भी स्वास्थ्य धन सब धनों से श्रेष्ठ है, अस्वस्थ जीवन तो मृत्यु से भी बदतर है । आइये, स्वास्थ्य - लक्ष्मी की पूजा करें ।
श्रीमद्भागवत के अनुसार धन्वंतरि का जन्म पुरुरवा के वंश में हुआ था । यही चंद्रवंश था ।
हरिवंश पुराण के अनुसार धन्वंतरि का आविर्भाव समुद्र मंथन से हुआ । पौराणिक मान्यताओं के अनुसार धन्वंतरि भगवान विष्णु के अवतार थे । वे अमृत-कलश लेकर अवतीर्ण हुए थे । कथा के अनुसार देवों और दानवों ने मिलकर समुद्र मंथन किया । इस समुद्र मंथन से चंद्रमा, लक्ष्मी, सुरा, उच्चैश्रवा (घोड़ा), ऐरावत (हाथी), कौस्तुभ मणि, कामधेनु, कल्पवृक्ष, अप्सराएं और विष सबसे पहले निकला जिसे दानवों ने लेने से इंकार कर दिया लेकिन समुद्र लक्ष्मी और अमृत पर अपना अधिकार जमाने के लिए असुरों ने देवताओं पर आक्रमण कर दिया । इधर धन्वंतरि ने देवताओं को अमृत देकर अमर कर दिया ।
सुश्रुत संहिता मंे भी धन्वंतरि को अमृत का जनक बताया गया है । अमृत बनाने की कला कालांतर में केवल धन्वंतरि के पास रह गयी । वास्तव में भगवान धन्वंतरि ने ही आगे चलकर आरोग्य, स्वास्थ्य और वायु के वेद ‘आयुर्वेद’ को बनाया ताकि पूरी मानव जाति निरोग रह सके और स्वास्थ्य से भरपूर जीवन जी सके । धन्वंतरि केवल मानव चिकित्सा विज्ञान के ज्ञाता ही नही थे, वरन् अन्य विषयों के भी ज्ञाता थे । उन्होंने घोड़ों के लिए शालिहोत्र शास्त्र, पेड़-पौधों के लिए वृक्षायुर्वेद तथा हाथियों के लिए पालकाप्य शास्त्र, पक्षियों के लिए शकुनि विज्ञान आदि शास्त्रों का प्रणयन किया ।
एक अन्य मान्यता के अनुसार धनवंतरि का कार्य क्षेत्र काशी रहा । उन्हें कई ग्रंथों में काशीराज भी कहा गया है । चूँकि धन्वंतरि को विष्णु का अवतार माना गया है, इसलिए लक्ष्मी उनकी सहज अनुगामिनी रही । धन्वंतरि वीर, विद्वान तथा प्राणाचार्य चिकित्सक थे ।
आयुर्वेद की वैज्ञानिक प्राण प्रतिष्ठा करने में भगवान धन्वंतरि का योगदान अभूतपूर्व है । धन्वंतरि रचित ‘धन्वंतरि संहिता’ अब अप्राप्य है । मगर संपूर्ण आयुर्वेद वाड.ग्मय इसी संहिता पर आधारित है ।
धन्वंतरि के अनुसार मृत्यु 101 प्रकार की है इनमें से एक केवल एक मृत्यु ही काल मृत्यु है, बाकी सब अकाल मृत्यु हैं । इन अकाल मृत्युओं का रोकने का प्रयास ही चिकित्सा है । धन्वंतरि के अनुसार परमार्थ के लिए आयुर्वेद से बढ़कर अन्य कोई साधन नही है ।