असल में मेरे अन्दर गांधीगिरि बचपन से भरी है. कहीं भी कुछ भी ग़लत दिखता है और मेरे भीतर का गांधी ज़िंदा होने लगता है, सिर उठाने लगता है अपना. लाख पिछले दिनों मैं संघमित्रा ट्रेन से पटना जा रही थी. ट्रेन में भीषण गंदगी, वो भी एसी कोच में. बस फिर क्या था? गन्दगी की बात हो और गांधी ज़ोर न मारे? सफ़ाई कर्मियों की जो क्लास ली, वो याद रखेंगे लम्बे समय तक. उन्हीं की झाड़ू से जो सफ़ाई अपने क्यूबिक में की, उसे यात्री भी न भूलेंगे. क्योंकि डांटा तो उन्हें भी था मैने, गन्दगी फ़ैलाने पर.