# काव्योत्सव 2
??? ग़ज़ल ???
ये कैसा करिश्मा है हैराँ है नज़र देखो |
बरसात के मौसम में जलता है शहर देखो |
हर हाथ में ख़जर है सीनों में ज़हर देखो,
बहता है लहू हर सू अब चाहे जिधर देखो |
दुनिया ने सताने में छोड़ी न कसर देखो,
मर जाउँगा सोचा था ज़िन्दा हूँ मगर देखो |
इस दौर के मंज़र तो हद दर्जा निराले हैं,
पीती है नदी पानी फल खाए शजर देखो |
वह डूब गया है तो इल्जाम न दो मुझको,
रोका था बहुत मैंने आगे है भँवर देखो |
साँपों की न हो बातें विषधर न वही केवल,
इस दौर का इन्साँ भी उगले है ज़हर देखो |
बनता है महल जिसके हाथों से वही अक्सर,
आकाश तले जीवन करता है बसर देखो |
सौ जुल्म किए मुझपर दीवाना कहा मुझको,
अफ़सोस सचाई की, कैसी है डगर देखो |
पहले तो न ऐसा था अब जाने हुआ क्या है,
मरते थे जो हम पर वो ढाते हैं कहर देखो |
विजय तिवारी, अहमदाबाद
मोबाइल - 9427622862