#काव्योत्सव #प्रेम #KAVYOTSAV -2
मिले थे न
कुछ महीनों बाद
पर इन कुछ अरसा में बदला था
बहुत कुछ
न बदल पाने के शर्त के साथ
क्योंकि एक रिश्ते ने
अंकुरण के लिए
पाई थी रोमांटिसिज्म की नमी
बेशक जमीं की उर्वरता
बता रही थी
नमीं को सोख लेने के कारक
हैं बहुत
जरुरी नहीं की प्रेम का ये अंकुरण
पौध बन पाए भी
जिंदगी की लहलहाती फसलें
बता रही थी
दोनो किसानों को
कि खेत की मेढ़ को न तोड़े तो
ठीक रहेगा
पर बहाव कहाँ रख पाती है ख्याल
पानी होती है सीमा रहित
नजरें मिलीं
था ऐसा जैसे बाघा बॉर्डर पर
सैनिकाध्यक्ष ने अदला बदला की मिठाई का डब्बा
था स्पर्श का एक अदम्य सुख
आंखों ने पलकों के सहारे
कि कोशिश संवाद की
बस फिर
संवाद, छुअन और सिहरन
चाहते न चाहते
खुले आसमान तले
बादलों ने की सरगोशी
बढ़ों, करो आगाज आगोश में बंधने का
हवाओं में फाख्ते ने चहकते हुए बताया था इजहार का सुख
हल्का सा तड़ित भी छमकते हुए
बोल ही उठा
जाओ भी न
खेत और किसान का युग्म
एक नए अपने खेत की फसल दिखाई
दूसरे ने हल्के स्पर्श के साथ कहा
आपके हरियाली का जबाब नहीं
साथ ही दी सलाह
तोड़ दें अगर
खेत की मेढ़
तो बहाव फसल पसन्द करेगी
कोशिश कर के देख लें क्या ?
बस किसानी
और चाहतों की नमी
खिलखिलाते हुए चेहरे पर दिखी
छुअन और आगोश का सुख
रिश्ते की कली को
दे गई एक प्यारा सा नाम
कुछ नाम, बेनामी होते हैं शायद
बेशक प्रेमसिक्त हों।
~मुकेश~