#काव्योत्सव२ #प्रेरणादायक
तू चल...
चाहे किस्मत ने नकारा है,
तु चल मंज़िल की चाहत में !
चाहे रास्तों ने कीतने भी कांटों को उतारा है,
तु चल मंज़िल की चाहत में !
चाहे जिवन मे मुश्किलों का जवाब करारा है,
तु चल मंज़िल की चाहत में!
चाहे लोगों के लिये तू हार का सितारा है,
तु चल मंज़िल की चाहत में!
चाहे जीत ने पास आने से धिक्कारा है,
तु चल मंज़िल की चाहत में!
चाहे इन कदमों ने हार को ही पुकरा है,
तु चल मंज़िल की चाहत में!
चाहे साथी ने रुकना स्वीकरा है,
तु चल मंज़िल की चाहत में!
चाहे जीत आज नहीं, उसे पाने का हक हमारा है ।