क्या जख्म दिया
नहीं भर रहा
मैं तड़प रही
मैं बिलख रही
तू पंछी है
या भँवरा है
रस ले गया
मेरे जीवन का
मैं सूख रही
मैं बिखर रही
तू कहाँ छिपा
मैं कहाँ ढूढूँ
इस दुनिया में
उस दुनिया में
बर्फ जमी है
एक पर्त बनी
मैं ठिठुर रही
मैं सिकुड़ रही
न होश मुझे
न हवास मेरा
मैं गुमसुम सी
टूटा विश्वास मेरा