क्या जीना है संभल संभल कर
कहीं तो डूब
बस अब किस्सा खतम कर
नहीं है कुछ भी आगे इन फिजाओं में
रूक जा
वो तेरी रूह में आ चुकी, बस अब उधर ही नजर कर
सबर कर अब सबर कर
तू सलीम या मजनू नहीं है जो तोड़ेगा किलों को दिवारों को
वो हासिल तो है, बस अपने दिल को उसीको तामिल कर तलब कर ।