इस कदर वो मुझे सज़ा दे गया
दर्द को जैसे कोई रास्ता दे गया
मेरे ही नक्शे कदम पर चल रहा था जो
निकाल कर मेरे ही जिस्म से रूह को ले गया
बड़ी शिद्दत थी जिसे मेरे क़दमों में सिमट जाने की
बेदखल कर के मुझे ही दर्द की रवानी दे गया
प्यास लगती तो ले आता समुंदर भी जो
रेत का दरिया, वो मुझे अपनी निशानी दे गया
साए की तरह जो किरदार में ढला था
खींच कर मेरे ही क़दमों से ज़मीं को ले गया
ज़िक्र मेरा जो करता था इबादत की तरह
ना जाने क्यों मेरी ही आंखों में पानी दे गया
गुनहगार हो कर भी खुद रहा बेदाग वो
छलनी कर के मुझे ही ज़ख्म रूहानी दे गया !
- Pearl verma