"झरोखा ये आंखे, खुलती - बंद होती कुछ कहतीं है,
कुछ तेरे - कुछ मेरे दिल का हाल बयां करतीं है।
काली कजरारी जैसे बाती की राख, भूरी ये आंखें
जैसे रेगिस्तान, समंदर की तरह नीली तो कहीं
सावन की हरियाली से हरि - भरी ये आंखे
झरोखा ये आंखे, खुलती बंद होती कुछ
कहती हैं।
कुछ तेरे - कुछ मेरे दिल का हाल बयां करतीं है