एक अनपढ़ा ख़त .... !
प्रिय माँ..... (जो होनेवाली थी....)
(राग: तू कितनी अच्छी हैं, तू कितनी भोली हैं प्यारी प्यारी हैं..... )
मैं तेरी बच्ची थी
कोख़ में पलती थी
प्यारी प्यारी थी
ओ माँ.... (4)
प्रभु ने बख्शी थी
गर्भमें रखी थी
मै खुद नहीं आईथी
ओ माँ.... (4)
सुख से मैं सोती थी तेरी पाके झोली
ढ़ेर सारी परियां थी मेरी हमजोली
मेरे इस धरती पे
ख़ुशी से आने की
दुआ वो करती थी
ओ माँ.... (4)
सपने संजोए थे माँ, मैंने मेरे मन से
लिपटी रहूँगी में माँ मैंतो तेरे तन से
पीऊँगी दूध तेरा
खिले तेरा चेहरा
मैं धन्य हो जाउंगी
ओ माँ.... (4)
कितना भयानक, दिन था वो मनहूस
ज़रुरत नहीं है मेरी, किया ऐसा महसूस
जुदा मनसे किया,
निकालके फेंक दिया
मैं कर क्या सकती थी
ओ माँ.... (4)
क्या तू जानती हैं माँ, रोई थी मैं कितना
मेरे साथ रो रहा था सारा स्वर्ग इतना
हुआ दुःख जब देखा
खुदा को खुद रोता
मै रुक नहीं पाई थी
ओ माँ.... (4)