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चप्पल ले लो, जूते ले लो
रंग-बिरंगे जी।
फूलों जैसे पैर रहेंगे,
हरदम चंगे जी।।.... .?
(१)
एक तुम्हारी सेवा में ये,
सदा रहें तैयार।
हंसकर जख्म हजारों सहते,
इनका सच्चा प्यार।।
गुस्सा हो, सिर चढ़ कर बोलें,
हो जायें दंगे जी।।...
फूलों जैसे पैर रहेंगे,
हरदम चंगे जी।।.... .?
(२)
काँटो के पथ इसने रोंदे।
एवरेस्ट चढ़ घूमा।
सागर तल गहराई देखी,
नभ का दामन चूमा।।
इसके अतुलित बल के आगे,
सब बे-ढंगे जी ।।....
फूलों जैसे पैर रहेंगे,
हरदम चंगे जी।।.... ?
(३)
चरण खड़ाऊँ सिर पर लेकर,
भरत अयोध्या आये।
चौदह वर्षों तक सिंहासन के,
सुख अदभुत पाये।।
महिमा इनकी देव कहें,
सनकादिक संगे जी ।।.....
फूलों जैसे पैर रहेंगे,
हरदम चंगे जी ।।.....?
(४)
डाकिन, साकिन,भूत -परीते,
मारे और भगाये।
चाटुकार, निंदक जन मित्रो,
कभी, पास ना आये।।
चांद सलामत कहे ना लो,
गुर्जर से पंगे जी ।।...
फूलों जैसे पैर रहेंगे,
हरदम चंगे जी ।।.....?
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मित्रो, रचना बिना काँट-छाँट किये अपने मूल स्वरूप कवि नाम सहित अग्रेषित करें। धन्यवाद।
*कवि विनोद सिंह गुर्जर*
चलभाष :- ९९७७११०५६१.