#kavyotsv
#प्रेम / मुहब्बत
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‘मुहब्बत’ न होती तो इक ग़ज़ल कौन कहता,
कीचड़ के फूल को फिर कमल कौन कहता,
प्यार तो इक अनमोल तोहफ़ा है खुदा का,
वर्ना पत्थर के महल को ताजमहल कौन कहता |
दुनिया कहती है कि क्या रखा है प्यार में,
खुद लैला मजनू के बजाती है डंके संसार में,
मुहब्बत तो एहसास है दिल की गहराईयों का,
इश्क को वर्ना इक अथाह समन्दर कौन कहता |
यह तो इक अनमोल सौगात है खुदा की
जिसमें छिपी है खुद रज़ा उसी खुदा की,
सोचो गर न होती महुब्बत की गलियां यहाँ,
इस साधारण सी धरा को “जन्नत” कौन कहता |
‘मुहब्बत’ है इक प्यारा सा, नन्हा सा लफ्ज़,
बाँध देता है चुपके से जो दो दिलों की नब्ज़,
धर्म, जाति, भाषा के दायरों से कहीं दूर है इश्क,
निश्छल न होता तो इसे इक ‘इबादत’ कौन कहता |
प्रेम जीवन है, प्रेम समर्पण है, प्रेम एक वरदान,
प्रेम शक्ति है, प्रेम भक्ति है, प्रेम तन मन प्राण,
पीकर इक विष का प्याला भी जीवित थी मीरा,
अन्यथा इस प्रेम को इक अमृत कौन कहता |
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डॉ सोनिया / स्वरचित /सर्वाधिकार सुरक्षित