मिली माटी में मुझे परवरिश उस परिवेश को वन्दन करता हु ।
मिले संस्कार ,सभ्यता,सानिध्य सदा उस दरवेश को वन्दन करता हु ।
कूद पड़े जंग में रणबाँकुरो के रक्त रंजित भेष को वन्दन करता हु ।
हिन्द की धरा महक उठती है मिट्ठीे के उस तिलक चन्दन को वन्दन करता हु ।
(दरवेश -साधु ,सन्यासी, संत,महात्मा ।)