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Sudhakar Mishra

Sudhakar Mishra

@sudhakarralhigmail.com002624


पोथी पढ़ के घोट ली, फिर भी समझ न आय
रहे सदा बेचैन वो ,कुछ भी मन न सुहाय
कुछ भी मन न सुहाय ,लिए मन व्यथित जो घूमे
संत समागम देख नदी तट, साधु चरणन को चूमे
मन अधीर हो शांत ,कृपा भगवन जो कीजै
जीवन सफल हो जाय ,जो गुरुवर शरण में लीजै
मंद मंद मुस्काय संतजन ,दिया जो पाठ पढ़ाय
जीवन सफल कभी न होय, करतब से जो भगाय
मूलमंत्र जीवन का मिलता, स्वजन को मित्र बनाय
किन्तु,परन्तु कभी नहीं आवै, निर्मल जो हो सुभाय
पूजा है बिना काम की, गुणन से गर परहेज
मम जीवन ही संदेश है ,लियो गांधी शब्द सहेज
फल की चिंता किए बिना ,कर्म करहुं दिन रात
देवकीनन्दन कह गए ,लाख टके की बात
इधर उधर जो भटकत हैं ,देते जो समय गंवाय
जीवन के इस सार को ,कभी समझ न पाय





#सार

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बेखबर हो के भी दिल दे बैठी
बैठे बिठाए एक अनजान दर्द ले बैठी
न जाने कौन सा विश्वास मन में बैठ गया
दिल के कोने में एक डर जैसे बैठ गया
गुजरते पल के साथ रंगीन नज़ारे दिखते
जिंदगी हो गई गुलज़ार ये सपने दिखते
एक दिन सोचा यूं सपने की हकीकत जानूं
बिन इशारा किए उन्हें क्यूं दिलबर मानूं
बेकाबू दिल की तरंगें संभाले नहीं संभलीं
उड़ते पगसे जैसे पी से मिलने को निकली
मिलके उनसे ज्यों मेरा पूछना हुआ ऐ दिल
बिखरे सारे सपने सामने था मेरा कातिल
एकतरफा प्यार का होता है क्या यही अंजाम
पूछना भूल थी या बरबादी का दूजा है नाम


#पूछना

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मुझे आई न बुलाने की कला, तुमसे आया न गया
फासला ये प्यार का हम दोनों से मिटाया न गया
वो लम्हा याद है हम दोनों की जब मुलाकात हुई
बातों में दिन बीत गया देखते देखते वो रात गई
वो समा जो आज भी इस दिल से भुलाया न गया
मालूम न था मिल रहे हैं मिलके बिछड़ने के लिए
मेरी किस्मत में लिखा है जैसे उजड़ने के लिए
इस तरह उजड़ी मेरी किस्मत कि बताया न गया
याद तो रह जाती है लेकिन वक्त गुजर जाता है
जैसे चमन में फूल तो खिलते हैं बिखर जाते हैं
दाग़ जो उनसे मिला फिर कभी मिटाया न गया
मुझे आई न बुलाने की कला तुमसे आया न गया



#कला

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थी शून्य जब तक तुम न थे, बेनाम सी बिना मोल सी।
मिलने के बाद तुमसे हुई, इक दिव्य मूर्ति अनमोल सी।।
#शून्य

तुझे छोड़कर दिल लगाऊं कहां, अब तो सारा ज़माना पराया लगे।
इक ठिकाना मिला मुद्दतों से बड़ी, अब ये संभव कहां कि हम साया मिले।।
तू कहे की ज़माना है मुझमें फ़िदा , मैं तो चाहूं तुझे ,
शेष छलावा लगे।
न है कोई चाहत बस तेरे सिवा, करके स्वीकार मेरे गले से लगे।।
दिया कर्तव्य पथ का अगर वास्ता, सुन ले मेरा वचन भी अभी हांथ लगे।
मै हूं ऊर्जा तेरी और शक्ति का घर, गर मै न रही हो जाओगे बिना प्राण के।।
साथ रहने के वास्ते हुआ है जनम, हूं पिया मै तुम्हारी तुम मेरे सनम।
है अखिल विश्व परिवार माने जो हम, एक दूजे की खातिर जिएं और मरें।।

#विश्व

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छवि मन में उभरती है सदा एक आतताई की
किया संहार सदियों से सताया और रुलाया भी
न कोई नियम और कानून होते बाहुबलियों को
मिटता रहा बलहीन कुचला नाजुक सी कलियों को
ये कैसा नाम कैसा राज अर्थहीन हो गया है अब
है बदला अर्थ जंगल का जंगली हो गए हम सब
कभी थे राम की सेना में बली भट और वनवासी
बढ़ाया मान जंगल का प्रभू श्रीराम अविनाशी
रचा इतिहास बड़भागी हुए उस विकट स्थिति में बदला हुआ है अर्थ जंगली का इस परिस्थिति में






#जंगली

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देखा हम सबने जीवन में ,जादूगरों का मायाजाल
किसी को कुछ बना देते, बुनते कैसे कैसे इंद्रजाल
बचपन की नज़रें थीं देखती, अचरज भरी ये चाल
हो जाता सब साकार, मदारी दे जब डमरू पे ताल
चकित होते थे देखकर खेल, मदारी होता मालामाल
अब न तो कोई मायाजाल, और न ही कोई इंद्रजाल
मदारी बनके कोरोना आया, रचा न कोई मायाजाल
दिखाया वही रचे थे हम, सैकड़ों वर्षों का जो हाल
नहीं ये कोई अजूबा था, हकीकत खड़ी हमारे भाल
हकीकत अब न समझे तो, आगे क्या होगा हाल
चलें हम सदा प्रकृति के साथ, बनाकर उसको अपना ढाल
रहे न शेष जिंदगी भर ,पछतावा न ही कोई मलाल

#आश्चर्य

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मानव जात उस ईश्वर का जितना भी आभार प्रकट करे उतना ही कम है। भगवान ने हम सभी को कई रूपों से प्रेमसागर में सराबोर कर रखा है। एक अबोध बालक को मां रूप में प्रेम का सागर दिया है, तो पिता के रूप में वटवृक्ष रूपी छाया प्रदान किया है। भाई - बहन का प्रेम, पति - पत्नी का प्रेम ,हम सभी को दादा - दादी का प्रेम, सास - बहू का प्रेम, इसी तरह प्रेम अनेक रूपों में विद्यमान है। काम (प्रेम) एक लेकिन नाम(रिश्ते - नाते) अनेक। हम सभी का परम् सौभाग्य है कि ईश्वर द्वारा हमें विभिन्न रूपों में प्रेम का सागर प्रदान करने की कृपा की है।

#विभिन्न

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इस कदर तन्हा हैं ज़िन्दगी, तुम्हारे जाने के बाद
जैसे वीरां हो गया हो शहर ,एक जलजले के बाद
क्यों नहीं होते आबाद शहर, आशिकों के ऐ खुदा
सहरा हो जाती है जिंदगी, बिना मोल बिना कीमत

#मूल्य

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मिलने की चाहत दिल में है पर डर क्यों ऐसा लगता है
न खत्म कहानी हो जाए इस दिल की जो मुझमें धड़कता है
मिलते ही प्रेम तरु मुरझाएंगे बरबस मन सोच तड़पता है
क्या प्रीति का दूजा नाम विरह है अपने को मै कैसे समझाऊं
या मुलाकात ही अंतिम सच है या पिया की जोगन बन जाऊं

#मुलाक़ात

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