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Muhammad Sadique Hussain

Muhammad Sadique Hussain

@muhammadsadiquehussain024411


#kavyotsav

ग़ज़ल (इश्क़)

कर लेंगें इश्क़ तुमसे एक बार थोड़ा और,
तुम कर के फ़िर से देखो इक़रार थोड़ा और,

चश्म-ए-ज़ार से तकते है हर पहर रस्ता तेरा,
कर लेंगें गर क़िसमत मे है लिखा इंतज़ार थोड़ा और,

सिक्के थे कुछ पुराने जो वफ़ा के लेकर निकले,
हासिल भी हो वफ़ा क्या,मांगे बाज़ार थोड़ा और,

हमने भी खाई है क़सम पाने की तुम्हे,
चाहे करो तुम हर दफ़ा इंकार थोड़ा और,

जीये जा रहे हैं एक बद-ग़ुमांनी मे आज-कल,
होगा तू भी मेरी ख़ातीर कभी बेक़रार थोड़ा और,

टुकड़े बहोत है दिल के समेटे जा रहें हैं,
मुस्करा कर ना कर हमे ज़ार-ज़ार थोड़ा और,

यूं रोज़ का झगड़ना, रूठना और मनाना तुम्हें,
देखो! बढ़ रहा है किस क़दर प्यार थोड़ा और,

इश्क़ पे चला है कब ज़ोर किसी का 'सादिक़'
ना हुआ है ना होगा ख़ुद पे इख़्तीयार थोड़ा और।
©sadique

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#kavyotsav
ग़ज़ल (परवाह)

होते हैं रोज़ तमाशे पर किसे परवाह,
उठते हैं रोज़ जनाज़े पर किसे परवाह,

देखें बहोत नज़ारे पर कोई तुमसा नहीं,
कोई लाख दिखाए बहारें पर किसे परवाह,

कर फ़ना अपनी हस्ती सजाया जो बाग़ीचा,
वो चुभाएं मुझको कांटे पर किसे परवाह,

है ज़िक्र जिन्का हर ग़ज़्ल में वो तो बे फ़िक्र हैं,
अब वाह-वह कर कोई नवाज़े पर किसे परवाह,

फ़ुरकत-ए-यार मे तड़पना वो क्या जाने,
हर पल भरे हम आंहें पर किसे परवाह,

हुए जो बेघर तेरे दिल से फ़िर कोई ठिकाना ना मिला,
हम भटके जो बे सहारे पर किसे परवाह,

अब रही ना कोई हसरत उस बे-वफ़ा की 'सादिक़',
अब बुलाएं भी खोल वो बाहें पर किसे परवाह।
©sadique

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#kavyotsav

ग़ज़ल (सहिफ़ा-ए-सादिक़)

शब सुलाया नहीं गया जैसे कभी सुलाया नहीं गया!!
सहर जगाया नहीं गया फ़िर कभी जगाया नहीं गया,

आज लाई ‌है क़िस्मत हमें उस अजनबी मक़ाम पर
जहां लाया नहीं गया कोई कभी लाया नहीं गया,

लुटेरे ने भी था लूटा हर दफ़ा मेरे ज़ीस्त का वो कोना,
जहां चुराया नहीं गया कुछ भी कभी चुराया नहीं गया

सर-ए-राह सबीक़ हमनवा से मिल गई थी यूं नज़र,
कभी मिलाया नही गया उनसे कभी मिलाया नहीं गया,

कहने को फ़ासला महज़ क़दम दो क़दम था दरम्यां,
क़दम बढ़ाया नहीं गया उनसे कभी बढ़ाया नहीं गया,

शब-ए-मैहताब-ओ-नूर-ए-क़मर-ओ-जलवा-ए-यार,
कभी दिखाया नहीं गया उनसे कभी दिखाया नहीं गया,

हम बनाएं क्या तसवीर या मुजस्सम उनसा हसीं‌ कोई,
जब बनाया नहीं गया ख़ुदा से कभी बनाया नहीं गया,

रह कब गए थे महफ़ूज़ हम बर्क़-ए-हुस्न-ए-यार से,
हमे जलाया नहीं गया गोया कभी जलाया नहीं गया!

नाम उनका दिल पे गोया हर्फ़-ए-मुक़र्र से लिख दिया,
जिसे मिटाया नहीं गया वो फ़िर कभी मिटाया नहीं गया,

हराया है ख़ुद के दिल ने जंग-ए-दिल-ओ-दिल में यूं हमें,
हमें हराया नहीं गया,जैसे पहले कभी हराया नहीं गया,
हांथ अपने ही ज़ख़्म खाए राह-ए-मुहब्बत में इस क़दर,
ज़ख़्म खाया नहीं गया जिस क़दर कभी खाया नहीं गया,

मुहब्बत कर गईं थी गोया मिसाल-ए-क़र्ज़-ए-सहाब,
कर्ज़ चुकाया नहीं गया हमसे कभी चुकाया नहीं गया,

निगाह-ए-जाम-ओ-आब-ए-चश्म छलकते रहे हिज्र में,
हमें पिलाया नहीं गया प्याला कभी पिलाया नहीं गया,

जाम-ओ-हुस्न-ए-साक़ी और कई तरक़ीब की बहोत,
दिल बहलाया नहीं गया पर कभी बहलाया नहीं गया,

आज सेहरा सा बन चुका है मेरा शहर-ए-दिल-ए-गुलिस्तां!
क्यों खिलाया नहीं गया इसे कभी खिलाया नहीं गया?

बे-ग़र्ज़ सा दिल लगा लिया जो एक बार फ़िर यूं हुआ,
दिल लगाया नहीं गया और से कभी लगाया नहीं गया,

ला साहिल पे सफ़ीने को मेरे इस तौर से डुबोया‌ वो बे-रहम,
जैसे डुबाया नहीं गया किसी और से कभी डुबाया नहीं गया

ढूंढे कहां वो दिल सज़ा-ए-इश्क़-ओ-ज़माने में जिसे,
कभी दुखाया नहीं गया वो दिल कभी दुखाया नहीं गया,

हर सितमगर मिले जो राहों में,हमसे पूछे बा-ख़ुलूस,
क्या सताया नहीं गया?तुम्हे कभी सताया नहीं गया?

आतिश-ए-अदावत ज़माने में क्यों फ़ैली है हर जगह?
अभी बुझाया नहीं गया या कभी बुझाया नहीं गया?

अताक़-ए-बेकसी में ख़ुद को यूं क़ैद कर दिया,
कोई आया नहीं गया वहां कभी आया नहीं गया ,

हर बूंद अश्क़ सबब-ए-फ़िराक़-ए-यार ज़ाया जब कर दिया ,
हमें रुलाया नहीं गया तब फ़िर कभी रुलाया नहीं गया,

मेरी आंखों को देख ना जाने क्यों सब कहते हैं हर दफ़ा,
हमें हंसाया नहीं गया क्या कभी हंसाया नहीं गया!?

उठाया गया था एक शक़्स उनकी मैहफ़िल से इस क़दर,
कभी बुलाया नहीं गया वो फ़िर कभी बुलाया नहीं गया,

वअ'दा सा कुछ ‌किया था हमने ख़ुद से भी एक कभी,
एक निभाया नही गया वो भी कभी निभाया नही गया,

हमारा क़िस्सा-ए-हाल भी है कुछ ऐसे गुम सहीफ़ों सा,
कभी सुनाया नहीं गया जिन्हें कभी सुनाया नहीं गया,

कोशिशें तो आज भी 'सादिक़' बहोत करते हैं हम मगर,
दिल से भुलाया नहीं गया उसे कभी भुलाया नहीं गया।
©sadique

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#kavyotsav

ग़ज़ल (क्यों)

यादें तेरी ये रात भर अब भी मुझे रुलाए क्यों,
तिश्नगी-ए-इश्क़ से मेरी रूह जल ना जाए क्यों।

वस्ल-ए-यार-ए-शब गया,बा-शर्म और बा-हया,
बैठा रहा वो सामने पलकों को झुकाए क्यों!!!!

कोशिशें हज़ार कीं,एक नहीं सौ बार कीं,
दिल से उतर गए मगर, दिल में उतर ना पाएं क्यों।

सुन सनम ओ बेवफ़ा,जा तुझे भुला दिया,
भूल से भी हम तेरी यादें ना भुलाएं क्यों।

वो हमनशीं-ओ-हमनवा,वो ख़ुशफ़हम-ओ-ख़ुदख़वा,
देख कर मयियत मेरी आज अश्क़ वो बहाए क्यों।

बाद-ए-सबा ये बेइख़तियार,पूछे है तुझसे परवरदिगार,
बाग़ जो है जल रहा तो चले हैं सर्द हवाएं क्यों।


ऐ ज़िन्दगी एक सवाल है,ग़िले है कुछ ऐतराज़ है,
जब रूलाना हो मुझे बाद में तो पहले तू हंसाए क्यों।


दिल तो ठहरा दिल-फ़रोश,ज़प्त करे है ग़म हनोज़,
बार-ए-ग़म वो यार के अब सहा ना जाए क्यों।।।

रातें तमाम उम्र की तुझे याद कर ग़ुज़ा़र दीं,
आज सोएं है जो क़ब्र में कोई हमे जगाए क्यों।

इश्क़-ए-'सादिक़' बेइंतहा,तू क्यों नहीं समझ सका,
आज,आ के मेरी क़ब्र पे चादर-ए-गुल चढ़ाए क्यों।
©sadique

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#Kavyotsav

ग़ज़ल (सुरुर)

कभी उन पर भी छाया रात दिन मेरा सुरूर था,
था दूर बहोत निगाहों से पर दिल के हुज़ूर था।

चाहा के रोक दूं मैं जुम्मबिश-ए-ज़मान को,
मै बदग़ुमां सा कोई,मुब्तिला-ए-फितूर था।

क्यों उतर गया दिल से मेरे वो कुछ ऐसे,
जो इश्क़ था हमारा,जो हमारा ग़ुरूर था।

रस्म-ए-दुनिया की ज़ंजीरों में बंध गयी थी मुहब्बत,
बे रूह से जिस्म मे,दिल धड़कने को मजबूर था।

हर ख़त जलाया ज़ालिम ने बड़े इत्मीनान से,
पढ़ता था जिसे रात दिन गोया कोई ज़ुबूर था।

वो छोड़ गया मुझे और ये भी ना बताया,
क्या ख़ता थी मेरी,आख़िर क्या क़ुसूर था।

समझेगा तु ये बात कभी किसी रोज़ शायद,
तेरा कुछ नहीं था 'सादिक़',पर कुछ तो ज़ुरूर थ।
©sadique

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नज़म (सफ़र)

ये हम कहां जा रहे हैं,किस गली! किस शहर!!!
ना निशां किसी मंज़िल का,ना उस तक जाती कोई रहग़ुज़र।

मीलों तक सिर्फ सेहरा है,बंजर है और ये सफ़र,
ना कोई साया है,ना कोई दरया,ना कोई शजर।

एक बार जो संभल जाते, लड़खड़ाते रास्तों पे,
अब ये तूफ़ां क्यों आए फ़िर आज़माने सबर!!

कभी चलते हैं थोड़ा तो कभी ठहर जाते हैं,
कभी ढ़ूंढ़ते है हमराही,कभी कोई हमसफ़र।

आसमां भी कभी बरस जाता है बिन अब्र के,
जब देखता है हमें भटकते चुप-चाप दर-ब-दर।

ज़िन्दगी बेवफ़ा है गर तो उलफ़त-ए-हयात क्यों!!??
कभी देती है खुशियां, कभी आंसू तो कभी ज़हर।।।

सुकूं दे जाए इस क़लब-ए-मुज़तर को,
अब ना होती है वो सुबह,ना वो सहर!!!

हर एक की कहानी, कुछ नयी, कुछ पुरानी,
हर कोई ग़मज़दा,हर कोई साहिब-ए-अजर।

यूं फ़िरते रहना शायद फ़ितरत है हमारी,
नदां है बहोत, समझते नहीं मंज़िल की क़दर।


हम है किसी नशे में या किसी वस-वसे में,किसे पता!!
हम दुनिया से बेख़बर, दुनिया हमसे बेख़बर!!!

कभी पाओ गर जो मंज़िल तो समझोगे 'सादिक़',
कितनों से खाए ठोकर,कितनों ने ढ़ाए कहर।।।।
©sadique

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ग़ज़ल (तन्हाई)

यूं जो रोते हो रातों में तन्हा,ये बात अच्छी तो नहीं है,
ना मिलना किसी से ना कुछ कहना,ये बात अच्छी तो नहीं है।

करे क्यों ऐतराज़ कोई तेरे अश्क़ों पर बेवजह!
जो रोता भी है तू तो कहते हैं ये बात अच्छी तो नहीं है।

ख़ामोशी तेरी कोई क्योंकर समझता नहीं,
ज़बान अगर खोले तो कहता है ये बात अच्छी तो नहीं है।

तू है गोया कोई अर्ब आसमां में काबिज़,
जो बरस जाए कभी तो कहतें हैं,ये बात अच्छी तो नहीं है।

उन्से मिलना ये क़िस्मत थी तुम्हारी,मिलके फिर बिछड़े ये क़िस्मत थी तुम्हारी,
माना क़िस्मत है मगर ये बात अच्छी तो नहीं है।

ये वक़्त अभी दिखलाएगा तुम्हे और वक़्त क्या क्या,
वक़्त,वक़्त की बात है, पर!! ये बात अच्छी तो नहीं है।

दिल है नादान बहोत,कहो क्या हम करें 'सादिक़'?
करता है दिल्लगी,ये बात अच्छी तो नहीं है।
©sadique

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#kavyotsav

ग़ज़ल (इंतज़ार)

ज़रा ठहरो!!! बचीं रातें ,अभी कुछ और भी है,
तुम से कहनी हैं जो बातें,अभी कुछ और भी हैं!

यूं ही तुम आए हमसे मिलने बेवजह,या फ़िर!
ज़रा बतलाओ के मिलने की वजह कुछ और भी है?

हमसे रुख़ फ़ेर खड़े हो ना जाने क्यों ऐसे!
ये बेरुख़ी ही एक सज़ा है? या कुछ और भी है?

पेश यूं आ रहे हो बा तकल्लुफ से क्यों?
तेरा हमसे ताल्लुक, तो कुछ और भी है!

एक नहीं तू ही सबब, हालत-ए-ज़ार की वाहिद,
गुल हैं कुछ इनमें,गुल-ए-ख़ार,कुछ और भी हैं!

चंद लम्हात जो बाक़ी हैं, गुज़र जाने दो,
हम चले जाएं,तुम्हे इंतज़ार कुछ और भी है?

एक नहीं तुम ही जो करते हो तर्क़-ए-सादिक़,
कुछ और भी थे पहले,आगे कुछ और भी हैं!
©sadique

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