#kavyotsav
ग़ज़ल (इंतज़ार)
ज़रा ठहरो!!! बचीं रातें ,अभी कुछ और भी है,
तुम से कहनी हैं जो बातें,अभी कुछ और भी हैं!
यूं ही तुम आए हमसे मिलने बेवजह,या फ़िर!
ज़रा बतलाओ के मिलने की वजह कुछ और भी है?
हमसे रुख़ फ़ेर खड़े हो ना जाने क्यों ऐसे!
ये बेरुख़ी ही एक सज़ा है? या कुछ और भी है?
पेश यूं आ रहे हो बा तकल्लुफ से क्यों?
तेरा हमसे ताल्लुक, तो कुछ और भी है!
एक नहीं तू ही सबब, हालत-ए-ज़ार की वाहिद,
गुल हैं कुछ इनमें,गुल-ए-ख़ार,कुछ और भी हैं!
चंद लम्हात जो बाक़ी हैं, गुज़र जाने दो,
हम चले जाएं,तुम्हे इंतज़ार कुछ और भी है?
एक नहीं तुम ही जो करते हो तर्क़-ए-सादिक़,
कुछ और भी थे पहले,आगे कुछ और भी हैं!
©sadique