#kavyotsav
ग़ज़ल (इश्क़)
कर लेंगें इश्क़ तुमसे एक बार थोड़ा और,
तुम कर के फ़िर से देखो इक़रार थोड़ा और,
चश्म-ए-ज़ार से तकते है हर पहर रस्ता तेरा,
कर लेंगें गर क़िसमत मे है लिखा इंतज़ार थोड़ा और,
सिक्के थे कुछ पुराने जो वफ़ा के लेकर निकले,
हासिल भी हो वफ़ा क्या,मांगे बाज़ार थोड़ा और,
हमने भी खाई है क़सम पाने की तुम्हे,
चाहे करो तुम हर दफ़ा इंकार थोड़ा और,
जीये जा रहे हैं एक बद-ग़ुमांनी मे आज-कल,
होगा तू भी मेरी ख़ातीर कभी बेक़रार थोड़ा और,
टुकड़े बहोत है दिल के समेटे जा रहें हैं,
मुस्करा कर ना कर हमे ज़ार-ज़ार थोड़ा और,
यूं रोज़ का झगड़ना, रूठना और मनाना तुम्हें,
देखो! बढ़ रहा है किस क़दर प्यार थोड़ा और,
इश्क़ पे चला है कब ज़ोर किसी का 'सादिक़'
ना हुआ है ना होगा ख़ुद पे इख़्तीयार थोड़ा और।
©sadique