#kavyotsav
ग़ज़ल (क्यों)
यादें तेरी ये रात भर अब भी मुझे रुलाए क्यों,
तिश्नगी-ए-इश्क़ से मेरी रूह जल ना जाए क्यों।
वस्ल-ए-यार-ए-शब गया,बा-शर्म और बा-हया,
बैठा रहा वो सामने पलकों को झुकाए क्यों!!!!
कोशिशें हज़ार कीं,एक नहीं सौ बार कीं,
दिल से उतर गए मगर, दिल में उतर ना पाएं क्यों।
सुन सनम ओ बेवफ़ा,जा तुझे भुला दिया,
भूल से भी हम तेरी यादें ना भुलाएं क्यों।
वो हमनशीं-ओ-हमनवा,वो ख़ुशफ़हम-ओ-ख़ुदख़वा,
देख कर मयियत मेरी आज अश्क़ वो बहाए क्यों।
बाद-ए-सबा ये बेइख़तियार,पूछे है तुझसे परवरदिगार,
बाग़ जो है जल रहा तो चले हैं सर्द हवाएं क्यों।
ऐ ज़िन्दगी एक सवाल है,ग़िले है कुछ ऐतराज़ है,
जब रूलाना हो मुझे बाद में तो पहले तू हंसाए क्यों।
दिल तो ठहरा दिल-फ़रोश,ज़प्त करे है ग़म हनोज़,
बार-ए-ग़म वो यार के अब सहा ना जाए क्यों।।।
रातें तमाम उम्र की तुझे याद कर ग़ुज़ा़र दीं,
आज सोएं है जो क़ब्र में कोई हमे जगाए क्यों।
इश्क़-ए-'सादिक़' बेइंतहा,तू क्यों नहीं समझ सका,
आज,आ के मेरी क़ब्र पे चादर-ए-गुल चढ़ाए क्यों।
©sadique