#kavyotsav
ग़ज़ल (सहिफ़ा-ए-सादिक़)
शब सुलाया नहीं गया जैसे कभी सुलाया नहीं गया!!
सहर जगाया नहीं गया फ़िर कभी जगाया नहीं गया,
आज लाई है क़िस्मत हमें उस अजनबी मक़ाम पर
जहां लाया नहीं गया कोई कभी लाया नहीं गया,
लुटेरे ने भी था लूटा हर दफ़ा मेरे ज़ीस्त का वो कोना,
जहां चुराया नहीं गया कुछ भी कभी चुराया नहीं गया
सर-ए-राह सबीक़ हमनवा से मिल गई थी यूं नज़र,
कभी मिलाया नही गया उनसे कभी मिलाया नहीं गया,
कहने को फ़ासला महज़ क़दम दो क़दम था दरम्यां,
क़दम बढ़ाया नहीं गया उनसे कभी बढ़ाया नहीं गया,
शब-ए-मैहताब-ओ-नूर-ए-क़मर-ओ-जलवा-ए-यार,
कभी दिखाया नहीं गया उनसे कभी दिखाया नहीं गया,
हम बनाएं क्या तसवीर या मुजस्सम उनसा हसीं कोई,
जब बनाया नहीं गया ख़ुदा से कभी बनाया नहीं गया,
रह कब गए थे महफ़ूज़ हम बर्क़-ए-हुस्न-ए-यार से,
हमे जलाया नहीं गया गोया कभी जलाया नहीं गया!
नाम उनका दिल पे गोया हर्फ़-ए-मुक़र्र से लिख दिया,
जिसे मिटाया नहीं गया वो फ़िर कभी मिटाया नहीं गया,
हराया है ख़ुद के दिल ने जंग-ए-दिल-ओ-दिल में यूं हमें,
हमें हराया नहीं गया,जैसे पहले कभी हराया नहीं गया,
हांथ अपने ही ज़ख़्म खाए राह-ए-मुहब्बत में इस क़दर,
ज़ख़्म खाया नहीं गया जिस क़दर कभी खाया नहीं गया,
मुहब्बत कर गईं थी गोया मिसाल-ए-क़र्ज़-ए-सहाब,
कर्ज़ चुकाया नहीं गया हमसे कभी चुकाया नहीं गया,
निगाह-ए-जाम-ओ-आब-ए-चश्म छलकते रहे हिज्र में,
हमें पिलाया नहीं गया प्याला कभी पिलाया नहीं गया,
जाम-ओ-हुस्न-ए-साक़ी और कई तरक़ीब की बहोत,
दिल बहलाया नहीं गया पर कभी बहलाया नहीं गया,
आज सेहरा सा बन चुका है मेरा शहर-ए-दिल-ए-गुलिस्तां!
क्यों खिलाया नहीं गया इसे कभी खिलाया नहीं गया?
बे-ग़र्ज़ सा दिल लगा लिया जो एक बार फ़िर यूं हुआ,
दिल लगाया नहीं गया और से कभी लगाया नहीं गया,
ला साहिल पे सफ़ीने को मेरे इस तौर से डुबोया वो बे-रहम,
जैसे डुबाया नहीं गया किसी और से कभी डुबाया नहीं गया
ढूंढे कहां वो दिल सज़ा-ए-इश्क़-ओ-ज़माने में जिसे,
कभी दुखाया नहीं गया वो दिल कभी दुखाया नहीं गया,
हर सितमगर मिले जो राहों में,हमसे पूछे बा-ख़ुलूस,
क्या सताया नहीं गया?तुम्हे कभी सताया नहीं गया?
आतिश-ए-अदावत ज़माने में क्यों फ़ैली है हर जगह?
अभी बुझाया नहीं गया या कभी बुझाया नहीं गया?
अताक़-ए-बेकसी में ख़ुद को यूं क़ैद कर दिया,
कोई आया नहीं गया वहां कभी आया नहीं गया ,
हर बूंद अश्क़ सबब-ए-फ़िराक़-ए-यार ज़ाया जब कर दिया ,
हमें रुलाया नहीं गया तब फ़िर कभी रुलाया नहीं गया,
मेरी आंखों को देख ना जाने क्यों सब कहते हैं हर दफ़ा,
हमें हंसाया नहीं गया क्या कभी हंसाया नहीं गया!?
उठाया गया था एक शक़्स उनकी मैहफ़िल से इस क़दर,
कभी बुलाया नहीं गया वो फ़िर कभी बुलाया नहीं गया,
वअ'दा सा कुछ किया था हमने ख़ुद से भी एक कभी,
एक निभाया नही गया वो भी कभी निभाया नही गया,
हमारा क़िस्सा-ए-हाल भी है कुछ ऐसे गुम सहीफ़ों सा,
कभी सुनाया नहीं गया जिन्हें कभी सुनाया नहीं गया,
कोशिशें तो आज भी 'सादिक़' बहोत करते हैं हम मगर,
दिल से भुलाया नहीं गया उसे कभी भुलाया नहीं गया।
©sadique