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शगुन का लिफाफा #KAVYOTASAV -2 ये जो हल्का पर वजन में बेहद भारी होता है शगुन का लिफाफा.. एक पिता के लिये स्नेह और प्रेम का प्रतिरूप है शगुन का लिफाफा.. एक बेटी को उसके मायके आने के लिये दिया एक शुल्क सा है शगुन का लिफाफा.. भर देता है एक पिता अपने प्यार के रूप में नोटों की एक गड्डी से शगुन का लिफाफा... लेकिन एक बेटी के लिये पिता को दिया गया एक और बोझ है शगुन का लिफाफा... उसे बेवजह सोचने पर मजबूर करता है शगुन का लिफाफा... माँ की महीनों से सहेज कर रखी बचत का अंश है शगुन का लिफाफा... भाई की घिसी हुई चप्पलों की रगड़ है शगुन का लिफाफा... भाभी के खर्चे में की गई कटौती से भरा जाता है शगुन का लिफाफा... ससुराल पक्ष के लिये आदर सम्मान का भाव रखता है शगुन का लिफाफा... बेटी के लिये भारी होकर भी ससुराल के लिये हमेशा हल्का ही है शगुन का लिफाफा... अपने अंदर कुछ न समेटे हुए भी बहुत से सवाल पीछे छोड़ जाता है शगुन का लिफाफा !! ©नेहाभारद्वाज
नारी जिसके नाम में..नर है समाया #KAVYOTSAV - 2 नारी जिसके नाम में..नर है समाया , नर को कौन..नारी से पृथक कर पाया , क्या कभी कोई पुरूष..स्त्री से खुद की तुलना है करता , जानता है भली भांति..दोनो के गुणों में नही है समानता ! ईश्वर की सृष्टि सृजन में तुम स्वयं हो जीवनदात्री , नौ महीनों की तपस्या से उत्पन्न करती हो..जीव , बनकर जननी... है केवल तुम्ही में ताकत , जो व्रत उपवास से बढ़ा दे..पति परमेश्वर की उम्र , कुछ तो होगा ही खास क्यों तुम्हारी उम्र में वृद्धि की नही कोई पूजा , व्रत ! क्या कभी होती है...पूजा पुरुषों की ! ये सौभाग्य मिला है केवल...स्त्रीरूप को ही ! क्या कभी किसी पुरूष को देखा है.. मनुष्य के ईश्वररूप में.. दुर्गा रूपी कन्या , सरस्वती रूपी माँ , लक्ष्मी रूपी बहू केवल स्त्री ही जन्म लेती मनुष्य रूप में ! यदि लगे जीवन है..तुम्हारा व्यर्थ ! लेना दिनभर अवकाश..स्पष्ट हो जायेगा अर्थ , निर्भर है केवल तुम पर...कब समझोगी ये गूढ़ रहस्य , साकार होगा नारी जीवन उस दिन , जब खुद समझोगी खुद का मूल्य ! © नेहा भारद्वाज
कलम की स्याही सी माँ #KAVYOTASAV -2 माँ होती है जीवन की कलम में स्याही सी जो हमेशा प्रेम के रंग से लबरेज रहती है जब लिखती है तो गढ़ देती है प्यार के शब्दो को मोतियों की माला में पिरोकर जरा सी सूख भी जाये तो प्रेम की धूप पाकर ममता का रंग पिघला जाती है माँ !! माँ तो सब जानती है कब कहाँ उसकी कितनी जरूरत है जब हम महसूस करते अब नही उसकी जरूरत या जानबूझकर भुला बैठते है उसकी अहमियत कभी कभी खुद को वापस दवात में छुपा लेती है माँ !! अपने बच्चों से चाहकर भी कुछ नही कह पाती है माँ इस दवात का ढक्कन थोड़ा खुला ही रहने देना माँ है कलम की स्याही इसे गीली ही रखना सूख न जाये दवात में पड़ी पड़ी उससे कभी कभी थोड़ा प्रेम गढ़ते रहना ताकि प्रेम की गर्माहट बनी रहे और स्याही अपना रंग दिखाती रहे ।। ©नेहा भारद्वाज
एक पन्ना डायरी का.. #KAVYOTASAV -2 एक पन्ना डायरी का हर शाम तक राह तकता है , हर आहट पर... अधूरा किस्सा पूरा होने की आस करता है , लिखी हुई पंक्तियों को पढ़कर... खुद ही नई कहानी गढ़ा करता है , कभी स्याही से तो... कभी सूखे गुलाब से विनती करता है , काश ! हो एक रोज पूरा अधूरा किस्सा... हर घड़ी यही आह भरता है , एक पन्ना डायरी का... अपने बहते आंसुओं को खुद ही पोंछ लिया करता है , रो पड़ती है कलम की स्याही भी जब पन्ना खामोश सा सिसका करता है ।। © नेहा भारद्वाज
साथ #KAVYOTSAV -2 क्यों न हम उस वक्त तक साथ निभाये जब तुम एक हाथ में लाठी थामे दूजे हाथ से मुझे थाम लो जब हमारे सिर के बाल ही नही बल्कि... भौहों पर भी सफेदी छा जाये जब हमारे मुंह से दांत भी अलविदा कह चुके हों और आंखों से पलकें भी आधी झड़ जायें उस पल में भी मैं तुम्हारी ठोड़ी को पकड़कर तुम्हारे करीब आऊँ और एक धीमी सी मुस्कान तुम्हारे चेहरे पर तैर जाये जब हम इस दुनिया में होते हुए भी केवल एक दूजे में ही गुम हो जब केवल मध्य में हम दोनो ही चमके और चारों ओर के सब दृश्य गौण हो ।। नेहा भारद्वाज कॉपीराइट
बिटिया #काव्योत्सव -2 थोड़ा सीधा चला करो... झुक कर नही ! कमर में कूब निकल जायेगा... फिर कौन तुमको ब्याहेगा ? कुछ सालो बाद... लड़कियों को झुक कर चलना चाहिए बिटिया ज्यादा तनकर मत चला करो सिर पर पल्लू रखकर सम्भालते हुए... बिटिया से बहू बनी रानी... बिना झुके सिर ढक ही नही पाती गर्भावस्था आयी... तनकर चलना मुश्किल हो गया एक बिटिया गोद में आयी... अब तो झुकना नियति बन गया बेटी की माँ को सादगी में झुक कर रहने की हिदायत दी गयी इतना झुकते झुकते... मेरुदंड ही तिरछा हो गया प्रौढ़ावस्था आते आते सीधे रहने की सलाह दी गयी जीवन भर झुके रहने वाले कंधों को भी आदत नही थी सीधा रहने की सारा दिन कमर के बल सख्त , तख्त पर लेटकर कमर सीधी रखी जा रही थी... जैसे जैसे मियाद पूरी हो रही थी कमर सीधा रहना सीख गयी थी जान गयी थी... जितना झुकेगी झुकाई ही जायेगी , तनकर रहेगी समाज से सीधे आंखे मिलायेगी , आत्मविश्वास बढ़ेगा अब झुकाने की... कोशिश भी नही की जायेगी । दूसरी ओर... बिटिया के कंधे भी अब झुकने लगे थे माँ ने उसकी आंखों में झांककर समझाया आत्मविश्वास मन का आंखों में झलकना चाहिए ईश्वर ने पंख दिये है तो उड़ना चाहिए बिटिया ने माँ के भावों को समझा और सपनो के विमान को आकाश में उड़ाना सीख लिया आज न कंधे झुक रहे न कमर आज पायलट बिटिया के सम्मान में झुक रहे है आकाश में बादल कहीं ।। नेहा भारद्वाज कॉपीराइट
माँ सीता की पुकार #KAVYOTSAV -2 कलयुग में माँ सीता की मूर्ति से आयी पुकार कर रही न्याय की एक गुहार.. क्यों प्रभु आपने किया इतना अन्याय क्यों छोड़ दिया जंगल में मुझे असहाय.. किये सप्तपदी के वचन पालन हर परिस्थिति में छोड़ राजमहल सुख बन गयी वनवासिनी... वध किया लकेन्श का मुझे बन्धन मुक्त किया.. दी परीक्षा अग्नि की मैंने न एक आवाज़ उठाई क्या पवित्र थे आप भी ये धारणा मन में न आई क्यों न लिवाई ऐसी कोई परीक्षा जिसमे दोनो ही को देनी होती पवित्रता की परिभाषा.. अगले ही क्षण एक धोबी के वचनों से हिल गया ब्रह्मांड सारा उंगली उठी मुझपर क्या अग्नि थी झूठी जिसने मुझे परीक्षा से था तारा या राजा के अहम के सम्मुख मौन हुआ संवाद सारा मैं तो ब्याहता बनकर थी जिसकी आई उसी ने त्याग दी स्वयं से मेरी परछाई रघुकुल की रीत वचन निभाने हेतु प्राण जायें बलिहारी क्यों न थी कोई प्रतिबद्धता विवाह के वचन निभाने की वचन की परिभाषा से अनभिज्ञ रघुकुल की रीत न्यारी रघुकुल के ही राम ने सप्तपदी में वचन थे दिये उनमे से एक वचन भी जीवन में आत्मसात न किये सप्त वचनों में से एक भी जो आपने निभाया होता संग रहती बनकर अर्धांगिनी न जीवन वन में बिताया होता जब मनुष्य रूप में न मिला न्याय तो पाषाण के प्रभु क्या करेंगे सहाय सहसा शांत हुआ मूर्ति के भीतर स्वर कदाचित ही मिल पायें कुछ प्रश्नों के उत्तर लेकिन आज भी माँ सीता चीत्कार करती है उनकी मूर्ति भीतर से सुबकती नैनो से अश्रु बहाती है ।। © नेहा भारद्वाज कॉपीराइट
स्त्री #KAVYOTSAV -2 एक स्त्री विवाह के कुछ सालों बाद ही विधवा हो गई कहां तो लदी रहती थी जेवरो से अब हल्की हो गई एक दिन सोचने बैठी कब क्या भूल हुई..? उसने तो मन से सब रस्मों रिवाज मनाये क्यों अधूरे रह गए उसके व्रत-त्योहार सारे ! हाथों की चूड़ियां और पैरों की बिछिया कभी खुद से दूर न की माथे पर बिंदिया की अनदेखी और मांग कभी सूनी न रहने दी जो बिंदिया गलती से भी कभी गिर जाती दौड़कर नई बिंदिया माथे पर सजाती सूने माथे की परिभाषा उसे बचपन से ही समझ आती थी ! अब उसने खुद को एक लकीर में कैद किया छाया भी अपनी किसी सुहागन पर न पड़ने दी अपनी मौजूदगी किसी शुभ काम में दर्ज न कराई अब लक्ष्मी नही वह कुलक्ष्मी की मानती परछाई ! एक रोज उसका सामना हुआ एक पुरुष से एक पुरुष जो विधुर था खोया था जिसने उसी की तरह अपना जीवन साथी उसकी सूरत से मगर इसका लेश मात्र भी एहसास ना हुआ उसकी जिंदगी से कोई रंग बेरंग ना हुआ ! ना हीं विधुर होने की कोई निशानी उसे किसी को दिखानी थी जबकि स्त्री की सूनी मांग और माथा विधवा होने की कहानी थी उस पुरुष ने स्त्री के समक्ष एक हाथ बढ़ाया दो घटा के निशान से मिलकर एक दंपत्ति का योग बनाया ! फिर से दे दी उसे कुछ निशानी विधवा से सुहागन होने की अब मांग उसकी भर गई थी माथे पर कुमकुम सज गई थी चूड़ी कंगन की खनक , पायल की छनक फिर से जीवन बन गई थी ।। ©नेहा भारद्वाज कॉपीराइट
#kavyotasav यादें यादें होती है बिना आकार , आकृति की... मन के एक कोने में रहती बस अंकुरित सी , यादें कभी वर्तमान का नही हो सकती कोई पल... यादें हमेशा एक कल है एक बीता हुआ कल , गर लिखीं हो तब भी पढ़ कर याद करनी ही है पड़ती... न दिखती है न बहती केवल महसूस होती , यादें होती है कुछ सुखद सी जो आज भी सुख का एहसास करा जाती.. जब तक संजोये रखो दिलोदिमाग में रहती भूल जाओ तो धुंआ बनकर उड़ती... यथा स्थिर पुराने सन्दूक सी एक कोने में धूल फांकती फिरती , कुछ दुखद सी जो अतीत के आंसू आज भी रुला जाती मस्तिष्क के एक कोने में धुंधली छायाचित्र सी... न कुछ कहती न सुनती बस यादें याद बन कर दिल मे उभरती !! © नेहाभारद्वाज
#kavyotasv जिम्मेदारियाँ जीवन का अभिन्न अंग है जिम्मेदारियां बचपन का चोला उतार परिपक्व होने का एहसास कराती है जिम्मेदारियां जीवन के उतार चढ़ाव में एक संयम बनाये रखना सिखाती है जिम्मेदारियां मितव्ययिता का एहसास कराती है जिम्मेदारियां होती है जब इनके आकार में वृद्धि तब माथे पर शिकन ला देती है जिम्मेदारियां जवानी में ही बुढापे का एहसास करा देती है जिम्मेदारियां धीरे धीरे चिंता का रूप ले लेती है ये जिम्मेदारियां कंधों पर बोझ बनकर उन्हें झुका देती है जिम्मेदारियां जीवन जीना नही झेलना सिखा देती है जिम्मेदारियां कभी कभी जीवन समाप्त हो जाये लेकिन अधूरी रह जाती है जिम्मेदारियां !! ©नेहाभारद्वाज
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