Hindi Quote in Poem by Neha Bhardwaj

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स्त्री
#KAVYOTSAV -2

एक स्त्री विवाह के कुछ सालों बाद ही विधवा हो गई
कहां तो लदी रहती थी जेवरो से अब हल्की हो गई
एक दिन सोचने बैठी कब क्या भूल हुई..?
उसने तो मन से सब रस्मों रिवाज मनाये
क्यों अधूरे रह गए उसके व्रत-त्योहार सारे !

हाथों की चूड़ियां और पैरों की बिछिया
कभी खुद से दूर न की
माथे पर बिंदिया की अनदेखी और मांग
कभी सूनी न रहने दी
जो बिंदिया गलती से भी कभी गिर जाती
दौड़कर नई बिंदिया माथे पर सजाती
सूने माथे की परिभाषा उसे बचपन से ही
समझ आती थी !

अब उसने खुद को एक लकीर में कैद किया
छाया भी अपनी किसी सुहागन पर न पड़ने दी
अपनी मौजूदगी किसी शुभ काम में दर्ज न कराई
अब लक्ष्मी नही वह कुलक्ष्मी की मानती परछाई !

एक रोज उसका सामना हुआ एक पुरुष से
एक पुरुष जो विधुर था खोया था जिसने
उसी की तरह अपना जीवन साथी
उसकी सूरत से मगर इसका लेश मात्र भी
एहसास ना हुआ उसकी जिंदगी से
कोई रंग बेरंग ना हुआ !

ना हीं विधुर होने की कोई निशानी
उसे किसी को दिखानी थी
जबकि स्त्री की सूनी मांग और माथा
विधवा होने की कहानी थी
उस पुरुष ने स्त्री के समक्ष एक हाथ बढ़ाया
दो घटा के निशान से मिलकर
एक दंपत्ति का योग बनाया !

फिर से दे दी उसे कुछ निशानी
विधवा से सुहागन होने की
अब मांग उसकी भर गई थी
माथे पर कुमकुम सज गई थी
चूड़ी कंगन की खनक , पायल की छनक
फिर से जीवन बन गई थी ।।


©नेहा भारद्वाज
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Hindi Poem by Neha Bhardwaj : 111161570
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