Hindi Quote in Poem by Neha Bhardwaj

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माँ सीता की पुकार
#KAVYOTSAV -2

कलयुग में माँ सीता की मूर्ति से आयी पुकार
कर रही न्याय की एक गुहार..
क्यों प्रभु आपने किया इतना अन्याय
क्यों छोड़ दिया जंगल में मुझे असहाय..
किये सप्तपदी के वचन पालन हर परिस्थिति में
छोड़ राजमहल सुख बन गयी वनवासिनी...
वध किया लकेन्श का मुझे बन्धन मुक्त किया..
दी परीक्षा अग्नि की मैंने न एक आवाज़ उठाई
क्या पवित्र थे आप भी ये धारणा मन में न आई
क्यों न लिवाई ऐसी कोई परीक्षा
जिसमे दोनो ही को देनी होती पवित्रता की परिभाषा..
अगले ही क्षण एक धोबी के वचनों से
हिल गया ब्रह्मांड सारा उंगली उठी मुझपर
क्या अग्नि थी झूठी जिसने मुझे परीक्षा से था तारा
या राजा के अहम के सम्मुख मौन हुआ संवाद सारा
मैं तो ब्याहता बनकर थी जिसकी आई
उसी ने त्याग दी स्वयं से मेरी परछाई
रघुकुल की रीत वचन निभाने हेतु प्राण जायें बलिहारी
क्यों न थी कोई प्रतिबद्धता विवाह के वचन निभाने की
वचन की परिभाषा से अनभिज्ञ रघुकुल की रीत न्यारी
रघुकुल के ही राम ने सप्तपदी में वचन थे दिये
उनमे से एक वचन भी जीवन में आत्मसात न किये
सप्त वचनों में से एक भी जो आपने निभाया होता
संग रहती बनकर अर्धांगिनी न जीवन वन में बिताया होता
जब मनुष्य रूप में न मिला न्याय
तो पाषाण के प्रभु क्या करेंगे सहाय
सहसा शांत हुआ मूर्ति के भीतर स्वर
कदाचित ही मिल पायें कुछ प्रश्नों के उत्तर
लेकिन आज भी माँ सीता चीत्कार करती है
उनकी मूर्ति भीतर से सुबकती नैनो से अश्रु बहाती है ।।


© नेहा भारद्वाज
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Hindi Poem by Neha Bhardwaj : 111161578
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